आनुवंशिकता की खोज एवं मंडल के प्रयोग

                    आनुवंशिकता की खोज 

                  कोई भी जीवो चाहे वह मनुष्य या पक्षी या  आम या गुलाब कोई और जी जन्म लेता है और निश्चित समय में अपने माता पिता जैसा दिखाने लगता है यह बात यदि आप सोचो तो कितना आश्चर्य हो सकता है आपने भी कभी सोचा होगा की। मैं  अपने पिता जैसा क्यों हूं यह बात से 2 सालों से मनुष्य के दिमाग में पूछती रहती है और समय-समय पर विभिन्न विभिन्न विचार प्रगट करते रहते हैं इसके बारे में आप अगली कक्षाओं में विस्तार से पड़ेंगे सीनियर इतना आपको बता दें कि यह विचार किसी ने किसी आधार पर गलत साबित हुई कुछ वैज्ञानिक आवश्य सही निष्कर्षों पर पहुंचते-पहुंचते रह गए आखिरकार मेंडल(Mendel) नामक वैज्ञानिक ने नियमों का सही-सही पता लगा ही लिया। इन्हीं केे प्रयोगों वह निष्कर्षों की विषय में हम अब अध्ययन करें 

                    कक्षा 10 आनुवंशिकता एवं उसके सिद्धांत।          
अनुवांशिकता एव अनुवंशिक लक्षण_ माता पिता से जो लक्षण संतान में पहुंचते है उसे आनुवंशिकता या अनुवांशिक लक्षण कहते हैं 
आनुवंशिक _जीव विज्ञान की वह शाखा जिसमें आनुवांशिक लक्षणों का अध्ययन करते हैं उसे अनुवांशिकी कहते हैं 
नोट_जीवों मे पाई जाने वाली विभिन्न बताएं एवं पीढ़ी का परिणाम नहीं होता बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी होने वाले परिवर्तनों के संवयन का परिणाम होता है। 
विभिन्नताऍ एक ही जाति के विभिन्न सदस्यों के मध्य और समान लक्षण पाए जाते हैं जिसके लक्षण वे एक दूसरे से अलग दिखते हैं विभिन्नताहां है कहलाती है यह दो प्रकार का होता है 
1, का‌यिक विभिन्नताए ये विभिन्नताएं वंशा गत नहीं होती हैं तथा इनका प्रभाव शारीरिक कोशिकाओं पर पड़ता है वातावरणीय कारको ताप,जल,वायु के कारण से विभिन्नताएं होती हैं
2,जननिक विभिन्नताएं ये वंशागत विभिन्नताएं है जो जनन कोशिकाओं में होती हैं यह उत्परिवर्तन के कारण या पूर्वजों में पहले से ही उपस्थित होती है

                 विभिन्नताओं के महत्व

1, यह जैव विकास का आधार है
2, अनुवाशिकता का आधार है
3, यह प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवो में अनूकुलतए  उत्पन्न करता है
                  
                      ग्रेगर जॉन मेंडल 
              
     अनुवांशिकता के जनक मेंडल का जन्म ऑस्ट्रेलिया ब्रून शहर के छोटे से गांव सिलिसिया में 22 जुलाई 1822 में हुआ था 1847 में ब्रून शहर में उत्पादरी नियुक्ति की गई अट्ठारह सौ सत्तावन ईसवी में मोटर पाइनस सटाइवन पर्स साथ विपरीत लक्षणों का कौन सा गत अध्ययन आरंभ किए तथा 1865 में सिद्धांत एवं निष्कर्षों को ब्रून के Natural histry society के सभा में रखा तो था 1866 में इसे पादप संकरण के प्रयोग के नाम से प्रकाशित किया गया तथा 1884 ईसवी में इनकी मृत्यु हो गई
सन 1900ई में इंग्लैंड के वैज्ञानिक युगोडिबिंज जर्मनी के काल‌‌ कांरेस तथा आस्ट्रेलिया के शैरमाक ने इनकी खोजों को पुनः खोजा इसलिए इन वैज्ञानिकों को आनुवंशिकी की पुनः खोज कर्ता तथा ग्रेगर जॉन मेंडल को अनुवांशिकी के जनक कहा जाता है 
मेंडल के सफलता के कारण , इसके मुख्य दो लक्षण है
1, मटक के पौधे का चुनाव
 2.मटर  का पौधा वार्षिक एवं द्विलिंगी होता है
3.इनमें स्वपरागण की क्रिया पाई जाती है
4. इसमें अनेक तुल्यात्मक लक्षण पाये जाते हैं 
5.इसमें कृतिम ट्रगड़ द्वारा संकरण कराया जा सकता है

         कार्यवधि के कारण
A. एक समय में एक ही लक्षण का अध्ययन किए
B. इन्होने 2-3 या अधिक पीढ़ियों का अध्ययन किया।
C. इन्होंने प्रत्येक पीढ़ियों का पूर्व लेखा-जोखा रखा।
D. इन्होंने केवल समयुग्मजी लक्षण को चुना जिसे उन्होंने शुद्ध कहा था 
       
1, तने की लंबाई = लंबा व बैना
2, फूलों का रंग = बैगनी व सफेद
3 बीज का कार = गोल वह झुर्रिदार
4 बीच का रंग =पीला तथा हरा
5 कली का आकार =फूली हुई तथा बंकिम
6 कली का रंग = पीला तथा हरा
7 पुष्प की स्थिति = कक्षीय तथा अन्तस्थ
        

     मेंडल के नियमों में प्रमुख शब्दावली 
1, जीन या कारक  Gene or faetasr,‌‌ सजीव में किसी लक्षण की वंशागति एवं नियंत्रण के लिए उत्तर दायित्व होते हैं जीन कहलाते हैं  अनुवांशिकी क्रियात्मक इकाई हैं जिन शब्द जो‌हन्सन johannsen ने दिया था

2, युग्मविकल्पी या एलिलोमाफ (Allele or allelomarph) विपरीत लक्षण वाले जोड़े को एलिलन्स कहते हैं जैसे Re.or .xy.or. Tt. e.t.c अतः एक ही दीपक लक्षण के दो विकल्पों को नियंत्रित करने वाले जीन के जोड़ें को एलिलोमार्क कहते हैं
3,समयुग्मजी एवं विषमयुग्मजी (Homo zygous and hetro zygous) जब एक ही लक्षण को नियंत्रित करने वाले दोनों जीन  एक प्रकार के हो तो इसे समयुग्मजी कहते हैं यह लक्षण शुद्ध (,TT, or, tt) होते हैं इसमें केवल एक प्रकार के युग्मक बनते है जब एक ही लक्षण को नियंत्रित करने वाले दोनों जीन अलग अलग हो तो इसे विषमग्मजी कहते हैं यह लक्षण संकर (Tt) होते हैं यह दो अलग प्रकार के युग्मक बनाते हैं
नोट सन 1902 ई में वैज्ञानिक वेटसन ने तथा सान्डस ने यह शब्द दिए 
    प्रभावी तथा अप्रभावी (, Dominant and Reccessive) जो लक्षण समयुग्मजी एवं विषमयुग्मजी दोनों अवस्थाओ मैं दिखाई दिखायी दे या जो लक्षण बाहर से दिखायी दे उसे प्रभावी लक्षण कहते  हैं 
जो लक्षण समयुग्मजी अवस्था मे दिखायी दे उसे अप्रभावी लक्षण कहते हैं 
संकर तथा संकरण (Hybrid and hybridisation) जब तुलनात्मक लक्षण वाले जनको के मध्य जो क्रास कराया जाता है तो इस क्रिया को hybridisation तथा उत्पन्न संतान को hybrid कहते हैं।
 एकसंकर  संकरण  (Monohybrid crass)  एक जोड़ी तुलनात्मक लक्षणों के अध्ययन के लिए जो संकरण कराया जाता है उसे एक संकरण कहते हैं 
द्विसंकरण (Dihybrid) जो जुड़ी तुलनात्मक लक्षणों के अध्ययन के लिए जो संकरण कराया जाता है द्विसंकरण कहते हैं
शुद्ध जाति  ऐसे पौधे जो समान लक्षण वाले पौधे से उत्पन्न होते है उसे शुद्ध जाति कहलाते है इनके जीन समयुग्मजी होते हैं इनसे केवल शुद्ध जाति के संतान उत्पन्न होते हैं
संकर जाति (hybrid species) ऐसे पौधे जो भिन्न-भिन्न लक्षणों वाले पौधे से उत्पन्न होते हैं संकर जाति कहलाते हैं इनके जीन समयुग्मजी होते हैं इनसे केवल शुद्ध जाति के संतान उत्पन्न होते हैं
जीनोटाइप तथा फिनोटाइप : वह लक्षण जो बाहर से दिखाई देते हैं उसे फिनोटाइप कहते हैं इनकी जीनी समझना समान तथा असमान दोनों होते हैं जैसे-TT.   Tt
वह लक्षण जो बाहर से दिखाई ना दे तथा जीनीक संगठन को व्यक्त करें उसे जिनोटाइप कहते हैं इन दोनों शब्दों की खोज 1909 में जांनसन ने किया था
संकर पूर्वज संकरण : जब विषय युग्मजी संकर संतानों (F1) तथा समयुग्मजी जनको के मध्य क्राश करा जाए तो उसे संकर पूर्वज संकरण कहते हैं 
जैसे: tt. X. Tt,  TT.X .Tt
परिक्षण संकरण( Test cross) प्रभावी समलक्षणी तथा प्रभावी जनक के मध्य क्राश कराया जाए तो उसे परिक्षण संकरण कहते हैं

एकल लक्षण Unit character. अनेक पीढ़ियों मैं  क्रास के बाद हाइब्रिड में जो लक्षण  अपना व्यक्तित्व बनाए रखें एकल लक्षण कहलाते हैं 
F1 तथा F2 (F1and F2 generation)  पैतृक पीढ़ियो के बीच शंकर और कराने पर प्राप्त पीढ़ी प्रथम पीढ़ी कहलाती है तथा F1 पीढ़ी से प्राप्त जीवो के स्वपरागण से प्राप्त पीढ़ी f2 पीढ़ी कहलाती है 
मेंडल के नियम मेंडल के तीन नियम है 
1 प्रभाविता का नियम 
2 पृथकरण या युग्मको के शुद्धता का नियम
3 स्वतंत्र अपपुहन का नियम 

प्रभाविता का नियम = जब परस्पर विपरीत लक्षण वाले पौधे के बीच संकरण कराया जाता है तो F1 पीढ़ी में जो लक्ष्य प्रदर्शित होते हैं उससे प्रभावित लक्षण तथा जो प्रदर्शित नहीं होते हैं तो उसे  अप्रभावी लक्ष्य करते हैं
उदाहरण,‌ मटर के पौधों में ऊंचाई के गुण के दो विरोधी रुपो- लंम्बापन (Tallness) व बौनापन (Dwarfness) पर विचार किया जाए शुद्ध लंबे व शुद्ध होने पौधों के बीच संकरण से f1 पीढ़ी में केवल लंबी संतान होते हैं लंबे पन का कारण व्यस्त होता है जबकि बौनापन दब जाता है लम्बापन प्रभावि लक्षण है जबकि बौनापन क्षीण लक्षण है।
       मेंडल ने मटर के पौधों में जिन साथ लक्षणों का अध्ययन किया
1. तने का स्वरूप : लंम्बापन (प्रभावी ) झुरीदार (क्षीण)
2.  बीज का स्वरूप: गोल बीच ( प्रभावी) झुरीदार (क्षीण)
3. पुष्प की स्थिति: कक्षीय( प्रभावी )अंतस्थ (क्षीण)
4. खली का रंग: हरा (प्रभावी) पीला (क्षीण)
5. फली का स्वरूप :फूली हुई (प्रभावी) संकुचित (क्षीण)
6. पुष्पक का रंग: लाल (प्रभावी)सफेद (क्षीण)

स्वतंत्र अपव्युहन का नियम (Law of independent Assortment) जब दो जोड़ी विपरीत लक्षणों वाले पौधों के बीच शंकर कराया जाता है तो दोनों लक्षणों का पृथक्करण स्वतंत्र रूप से होता है एक लक्षण की वंशागति दूसरे को प्रभावित नहीं करती।

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